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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - Jun 20 2021 6:15PM

NAPOLEON KE SUDHAR SEMESTER 5 PAPER 501 C11


नेपोलियन के सुधार (Reforms of Napoleon) :
 
नेपोलियन एक महान विजेता तो था ही, वह एक सुधारक, संगठनकर्ता एवं कुशल प्रशासक भी था। देश में भी उसके समक्ष अनेक समस्याएँ थीं जैसे राष्ट्र के पावों को भरना, राष्ट्रीय संस्थाओं के सही रूप निर्धारित करना, ऐसा ढाँचा तैयार करना जिसमें राष्ट्रीय जीवन भविष्य में दीर्घकाल तक ढाला जा सके और अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना। प्रथम कॉन्सट के रूप में नेपोलियन ने अपनी प्रशासन प्रतिभा का परिचय दिया। वह अपने देशवासियों की आवश्यकताओं को अच्छी जानता था । फ्रांस के निवासी अराजकता से त्रस्त थे और शान्ति एवं सुशासन चाहते थे। वे क्रान्ति के लाभों को छोड़ नहीं चाहते थे। अतएव अपनी स्थिति को सुदृढ बनाने तथा देशवासियों पर अपना प्रभाव स्थापित करने के उद्देश्य से नेपोलियन ने सुव्यवस्थित शासन एवं समाज की स्थापना का प्रयास किया ताकि लोग पूर्ण सुरक्षा का अनुभव करते हुए अपना दैनिक जीवन शान्ति से व्यतीत कर सकें। साथ ही उसने क्रान्ति के परिणामों पूर्ण समता तथा विशेषाधिकारों का उम्मूलन को भी स्थिर बनाने का प्रयास किया। सुव्यवस्थित शासन और देशवासियों के लिए क्रान्ति के लाभों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ नेपोलियन ने फ्रांसीसियों के सामाजिक जीवन में व्याप्त कटुता को दूर करने का प्रयास किया। उसने उस दलगत विद्वेष और ईर्ष्या को शान्त किया जिसने पिछले दस वर्षों से राष्ट्रीय जीवन में विष घोल रखा था। इन उद्देश्यों को सामने रखकर ही नेपोलियन ने फ्रांस की संस्थाओं का पुनर्संगठन और सामाजिक जीवन के पुनर्निमाण का कार्य प्रारम्भ किया। आन्तरिक सुधारों के द्वारा उसने फ्रांस को व्यवस्था, शान्ति और समृद्धि प्रदान किया और भ्रष्टाचार तथा कुशासन को दूर करके प्रशासन को सुदृढ़ बनाया। नेपोलियन के सुधार उसकी अद्भुत प्रशासनिक प्रतिभा के घोतक हैं। उसने अपने सुधारों से स्वयं को क्रान्ति का वास्तविक उत्तराधिकारी और उसके विरुद्ध होनेवाली प्रतिक्रिया का प्रतीक सिद्ध कर दिया। प्रथम कॉन्सल के रूप में नेपोलियन ने फ्रांस में निम्नलिखित सुधार किये
 
प्रशासन में सुधार (Administrative Reforms) नेपोलियन की विदेश नीति और उसकी समस्त राजनीतिक विजयों से अधिक महत्त्वपूर्ण वे सुधार थे जो उसने फ्रांस के आन्तरिक शासन में किया था। नेपोलियन स्वयं प्रवीणता, उद्यमशीलता और ईमानदारी का प्रतीक था। उसने प्रशासन में भी इनकी स्थापना का प्रयास किया। उसका शासन प्रतिभा और कार्यक्षमता के सिद्धान्तों पर आधारित था। फ्रांस में सर्वत्र अराजकता और अशान्ति व्याप्त थी। नेपोलियन ने अराजकता को समाप्त करने के लिए शासन का केन्द्रीयकरण कर दिया। स्थानीय स्वायत्तता और चुनाव, जो क्रान्ति के समय प्रशासन का आधार था, समाप्त कर दिया गया। प्रशासकीय विभाजन को पहले जैसा ही रहने दिया गया किन्तु अधिकारियों की नियुक्ति और कार्यविधि का स्वरूप बदल गया। स्थानीय शासन संस्थाओं को पूर्णरूप से केन्द्रीय सत्ता के अधीन कर दिया गया। सम्पूर्ण देश को विभागों में बाँट कर विभागाध्यक्ष के अधीन कर दिया गया। कम्यून के शासन के लिए मेयर की नियुक्ति की गयी। प्रीफेक्ट और मेयर नेपोलियन के प्रति उत्तरदायी रहते थे। इस प्रकार नेपोलियन ने बूब राजाओं की केन्द्रीय शासन प्रणाली को फिर से स्थापित करने का प्रयास किया। स्थानीय सभाओं का महत्त्व समाप्त हो गया। प्रीफेक्ट और मेयर वास्तविक शासक थे और वे नेपोलियन के प्रति उत्तरदायी थे। नेपोलियन स्वयं सभी पदाधिकारियों की नियुक्ति करता था। स्थानीय शासन में उसने पुरातन व्यवस्था की केन्द्रीयकरण की नीति को लागू किया। प्रशासन के सभी पदाधिकारी केन्द्रीय सरकार की अधीनता में रहते थे। सारी सत्ता नेपोलियन के हाथ में थी और मंत्री उसके आज्ञाकारी सेवक थे। इस प्रकार उसने
 
प्रशासन में नौकरशाही का सूत्रपात किया प्रशासन के क्षेत्र में नेपोलियन द्वारा किये गये परिवर्तनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह स्वतंत्रता कट्टर शत्रु था। शासन में चुस्ती और ईमानदारी लाने के बहाने उसने लोगों की राजनीतिक स्वतंत्रता का गला घोंट दिया। हाँ, समता के मार्ग में उसने कोई बाधा उत्पन्न नहीं किया और क्रान्तिकाल में समता के लिए किये गये कार्यों को स्वीकार भी कर लिया। प्रशासनके क्षेत्र में उसके सुधार क्रान्ति-विरोधी थे। राष्ट्रीय संविधान सभा ने प्रशासन में विकेन्द्रीयकरण की नीति अपनायी थी। स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों का निर्वाचन वहाँ की जनता करती थी और स्थानीय अधिकारी अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी रहते थे किन्तु नेपोलियन ने इस प्रणाली को समाप्त कर दिया। उसने केन्द्रीय और स्थानीय शासन को पूर्णतः केन्द्रित करके फ्रांस की जनता को राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया। स्थानीय शासन में पुरातन व्यवस्था पुनः प्रतिष्ठित हो गयी और इस प्रकार राष्ट्रीय संविधान सभा का प्रशासन के क्षेत्र में किया गया एक महत्त्वपूर्ण सुधार समाप्त हो गया। नेपोलियन के सुधार से शासन में चुस्ती, निपुणता और दृढता तो आई किन्तु फ्रांस की जनता स्वशासन के अधिकार से वंचित हो गयी। फ्रांस की यह शासन प्रणाली एक प्रकार से राजतंत्रात्मक ही थी।
 
नेपोलियन ने शासन सम्बन्धी नीति में भी परिवर्तन किया। दलगत विद्वेष और ईर्ष्या ने फ्रांस के राष्ट्रीय जीवन में विष घोल दिया था। अतः राजनीतिक गुटों के सम्बन्ध में उसने शान्ति की नीति अपनायी किन्तु दलबन्दी प्रथा का कठोरता से दमन किया। सरकारी नौकरियों का द्वार सभी योग्य व्यक्तियों के लिए खोल दिया गया। राजतंत्रवादियों, जिरोदिस्त दल के सदस्यों तथा जैकोबिनों को भी राज्य की सेवा का अवसर दिया गया। शर्त केवल यह थी कि वे वर्तमान शासकों के प्रति वफादार रहें और देश के प्रचलित कानूनों एवं संस्थाओं को स्वीकार कर लें। इस प्रकार उनसे केवल भक्ति की अपेक्षा की जाती थी। भगोड़े सामन्तों और कुलीनों को स्वदेश लौटने को कहा गया और योग्यता के अनुसार उन्हें पद दिया गया। क्रान्ति के समय सामन्तों के विरुद्ध अनेक कानून भी बने थे। उनकी सम्पत्ति छीन ली गयी थी। नेपोलियन ने ऐसे अनूनों को रद्द कर दिया तथा उन्हें वे अधिकार दिए गए जिनसे उन्हें बंचित कर दिया गया था। उन्हें जागीरें पुनः प्राप्त करने का अधिकार दिया गया। इतना अवश्य था कि जिनकी जागीरें बिक चुकी थीं उन्हें वापस दिलाने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया था।
 
आर्थिक सुधार (Economic Reforms) : फ्रांस की आर्थिक दशा सूई सोलहवीं के शासनकाल में ही बिगड़ चुकी थी। क्रान्तिकाल में भी देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी। सरकारी कर नियमित रूप से वसूल नहीं किये जाते थे। पत्र मुद्रा का मूल्य काफी घट गया था। डायरेक्टरी की अयोग्यता के कारण फ्रांस की आर्थिक अवस्था और भी खराब हो चुकी थी। नेपोलियन ने देश की दयनीय आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाये। पत्र मुद्रा को समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर सिक्कों का प्रचलन हुआ। शासन के खर्च में अपव्यय को रोका गया और मितव्ययिता की नीति को अपनाकर आय-व्यय को सन्तुलित किया गया। राज्यकर नियमित रूप से वसूल किया जाने लगा । 1800 ई० बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की गई। सरकार की आर्थिक नीति के संचालन का भार इसी बैंक को दिया गया था। इसे नोट छापने, जारी करने और मुद्रा के आदान-प्रदान का एकाधिकार प्राप्त था। उसने सट्टेबाजी पर रोक लगा दी. और स्टॉक एक्सचेंज पर नियंत्रण स्थापित किया। उसके ठेकेदारों के अनुचित मुनाफों को अन्त किया। नेपोलियन ने राष्ट्रीय ऋण के भुगतान के लिए एक अलग कोष की स्थापना की और पुराने सरकारी ऋण-पत्रों के बदले नये ऋण-पत्र जारी किया। नेपोलियन ने वाणिज्य व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया। अनेक नयी सड़कों का निर्माण करवाया गया। ये सड़कें व्यापार की प्रगति में काफी सहायक रहीं। देश के प्रमुख बन्दरगाहों का विस्तार करके उन्हें विशाल युद्धपोतो तथा व्यापारिक जहाजों के ठहरने योग्य बनाया गया। बन्दरगाहों की सुरक्षा की भी व्यवस्था की गयी। कारीगरों को निपुण बनाने के लिए राज्य की ओर से यांत्रिक शिक्षा की व्यवस्था की गयी। आन्तरिक व्यापार की प्रगति के लिए बाहर से आनेवाली वस्तुओं पर आयात कर में वृद्धि कर दी गयी। किसानों की दशा सुधारने के लिए कृषि की ओर ध्यान दिया गया। बंजर और रेतीले इलाके को उपजाऊ बनाने का प्रयास किया गया। सिंचाई के लिए नहर की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार नेपोलियन ने देश की अव्यवस्थित आर्थिक दशा को सुधार कर फ्रांस को आर्थिक संकट से बचा लिया।
 
नेपोलियन ने बेकारी की समस्या को भी दूर करने का प्रयास किया। बहुत से मोची, हैट तथा जीन बनाने वाले और दर्जी बेरोजगार ये नेपोलियन ने पाँच सौ जोड़ी जूते प्रतिदिन बनाने का आदेश दिया। इसी प्रकार दो हजार मजदूरों को कुर्सियाँ और मेज की दराजें बनाने का आदेश दिया गया। इसी उद्देश्य से पेरिस के नव निर्माण की योजनाओं का कार्य प्रारम्भ किया गया। ओर्क नहर के निर्माण का कार्य जारी रखा गया। सड़कों के निर्माण और गलियों की मरम्मत का कार्य प्रारम्भ किया गया। इस प्रकार अनेक योजनाओं को लागू कर नेपोलियन ने श्रमिक वर्ग को सन्तुष्ट करने का प्रयास किया।
 
राष्ट्रीय संविधान सभा ने एकाधिकार प्राप्त वाणिज्य संघों को समाप्त कर दिया था। नेपोलियन ने विशेषाधिकारों को पुनर्जीवित नहीं किया। उसने व्यापारिक श्रेणियों की पुनः स्थापना नहीं की। राष्ट्रीय संविधान सभा ने जो भूमि का वितरण किया था उसे यथावत रहने दिया गया। किसानों से उस जमीन को छोड़ने के लिए नहीं कहा गया जो उन्होंने कुतीनों या पादरियों से कम कीमत में खरीदे थे। नेपोलियन की इस नीति से फ्रांस के किसान भी सन्तुष्ट थे।कानून-संहिता (Napoleonic Code): नेपोलियन की विधि संहिता फ्रांस के कानूनों का एक सुसम्बद्ध, व्यवस्थित और सुगठित संकलन थी। क्रान्ति के पूर्व फ्रांस में न्याय व्यवस्था असन्तोषजनक थी। देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग कानून थे। जो काम एक जगह कानून था, यह दूसरी जगह गैर कानूनी हो जाता था। इस प्रकार कानून में एकरूपता का अभाव था। अभी तक कानूनों का संकलन नहीं हो पाया था और एक प्रकार से देश में कानूनी अराजकता व्याप्त थी। फ्रांस में कानून की अनेक व्यवस्थाएँ प्रचलित थीं जो विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों में उत्पन्न हुई थीं। क्रान्तिकाल में निर्मित कानून उभिन्न-भिन्न सिद्धान्तों पर आधारित थे। देश में कानूनी एकरूपता लाने के लिए इस बात की आवश्यकता थी कि विभिन्न कानूनों की पारस्परिक असंगतियों को दूर करके उन्हें क्रमबद्ध किया जाय और जनता के सामने स्पष्ट, युक्तिसंगत और तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाय जिससे न्याय व्यवस्था के सम्बन्ध में जो सन्देह, अनिश्चितता और भ्रम फैला हुआ था वह दूर हो जाय और प्रत्येक नागरिक को सुगमता से पता चल जाय कि राज्य और अन्य नागरिकों के सम्बन्ध में उसके काननी अधिकार क्या हैं? राष्ट्रीय संविधान सभा, नेशनल कन्वेंशन और निदेशक मण्डल ने भी विधि-संग्रह की आवश्यकता को महसूस किया था और इसके लिए समितियाँ भी नियुक्त की थीं, किन्तु काम पूरा न हो सका।
 
प्रथम कॉन्सल बनने के बाद नेपोलियन ने इस ओर ध्यान दिया और विधि-वेत्ताओं की सहायता से कानूनों का एक संग्रह तैयार करवाया गया जो 'नेपोलियन कोड' के नाम से जाना जाता है। पाँच प्रकार के कानूनों का संकलन हुआ था। 1. नागरिक कानून संहिता (Civil code), 2. नागरिक प्रक्रिया की संहिता (Code of Civil Procedure), 3. फौजदारी कानून (Penal code), 4. अपराधमूलक प्रक्रिया की संहिता (Code of Criminal Procedure), 5. व्यवसाय सम्बन्धी कानून संहिता (Commercial code) इन कानूनों को तीन स्रोतों से ग्रहण किया गया था फ्रांस के परम्परागत कानून, रोमन कानून और क्रान्ति के अनुभव। नेपोलियन रोमन कानून की सत्तावादी भावना से बहुत अधिक प्रभावित या और इसलिए उसने रोमन कानून के कुछ धाराओं को अपनी विधि संहिता में शामिल किया था जैसे विवाह, पैतृक अधिकार, प्रथा से सम्ब तलाक एवं गोद लेने से सम्बन्धित कानूनी धाराएँ। नागरिक कानूनों पर नेपोलियन के तगत विचारों का भी प्रभाव था जैसे – नारियों की परतंत्रता, पैतृक अधिकार में विश्वास और पारिवारिक सुख के लिए तलाक समिति की व्यवस्था। संहिता में तलाक को कठोरता से सीमित किया गया। सम्पत्ति का 1/4 भाग ही परिवार के बाहर वसीयत किया जा सकता था। गैर कानूनी सन्तानों को असाधारण स्थितियों में ही मान्यता दी जा सकती थी। पुरातन व्यवस्था की पैतृक सत्ता पुनः बालकों पर स्थापित हुई । इस प्रकार पारिवारिक जीवन में पिता की सत्ता की पुनः स्थापना की गई और उसके अधिकार को दृढ बनाया गया ।
 
नेपोलियन की विधि संहिता सिद्धान्त पर नहीं, व्यावहारिक बुद्धि और अनुभव पर आधारित थी। इसमें पुरातन व्यवस्था के अनेक दोषों को दूर कर दिया गया था। क्रान्तियुग में लोगों को जो सामाजिक लाभ प्राप्त हुआ था उसे सुरक्षित रखा गया था। इसमें किसी प्रकार का राजनीतिक अथवा धार्मिक पक्षपात नहीं किया गया था। इसमें धार्मिक सहिष्णुता एवं न्याय की गारन्टी दी गई थी। इसमें नागरिक विवाद तथा विवाह बिच्छेद का उपबन्ध था। इसमें व्यक्तिगत सम्पत्ति की पवित्रता पर बल दिया गया था। विधि संहिता ने निजी सम्पत्ति के सिद्धान्त को और अधिक दृढ किया औद्योगिक नियमों और धार्मिक संस्थाओं पर भूमि खरीदने के बारे में नियंत्रण लगाकर भूमि के वितरण में सहायता की राज्य ही ब्याज की दर निश्चित करता था तथा जनोपयोगी सेवाओं के लिए मुआवजा देकर व्यक्ति की सम्पत्ति का स्वामी बन सकता था। इस प्रकार विधि संहिता द्वारा नागरिकों के सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारों की रक्षा की गई थी। सामन्ती प्रथा और सामन्तों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। व्यवसाय और धार्मिक क्षेत्र में स्वतंत्रता के सिद्धान्त को मान्यता दी गयी। संहिता में सबसे महत्वपूर्ण धारा पुत्रों के बीच सम्पत्ति के बराबर बँटवारे की थी। इस धारा का प्रभाव फ्रांस के अतिरिक्त अन्य तीस देशों के सामाजिक विकास पर पड़ा। विधि संहिता में सिविल विवाह की व्यवस्था भी की गयी थी। सिविल विवाह और तलाक की प्रथा को मान्यता देकर नेपोलियन ने यूरोप में इस बात का प्रचलन किया कि पादरियों के सहयोग के बिना भी समाज का काम चल सकता है। विधि-संहिता के द्वारा कान्ति की उपलब्धियों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया था। फ्रांस की क्रान्ति के मौलिक सिद्धान्तों में एक सिद्धान्त था कानूनी समता अर्थात् कानून की नजर में सभी नागरिकों का समान होना । विधि संहिता में इस सिद्धान्त को बरकरार रखा गया था। इसके द्वारा सम्पूर्ण फ्रांस में एक समान कानून, धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई। विधि संहिता के द्वारा एक ऐसे शासन की स्थापना हुई जिसमें भू-स्वामी वर्ग के स्पष्टअधिकार, धर्म के अत्याचारों से मुक्त नागरिक कानून, प्रत्येक मनुष्य के समान अधिकारों की घोषणा की गई। समान कानूनों की व्यवस्था सरत एवं क्रियात्मक रूप में शीघ्र ही कार्यान्वित की जा सकती थी। यात में विधि-संहिता फ्रांस के लिए एक महान वरदान थी।
 
तो नेपोलियन की विधि संहिता फ्रांसीसी क्रान्ति की उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन इसमें खामियों भी थीं। इसमें अनजीवियों के हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई थी। इसमें मजदूरों के वेतन और आजीवन इकरारनामों के बारे में कोई उल्लेख नहीं था तथा श्रमिकों के मामलों में मालिकों को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई थी। यह संहिता नारियों की परतंत्रता एवं असमानता तथा उपनियेशों में दास प्रथा का समर्थन करती थी। विधि संहिता में मारियों को उचित स्थान प्रदान नहीं किया गया था और नारियों की अधीनता पर ही बल दिया गया था। पत्नी पर पति का पूर्ण अधिकार स्वीकार किया गया था। इसका कारण यह था कि नेपोलियन नारियों के अधिकारों और समाज में उनके स्थान के विषय में बहुत रूढ़िवादी था। उसने पति-पत्नी के अधिकारों और कर्त्तव्य सम्बन्धी नियम में लिखा था, "पति अपनी पत्नी की रक्षा के लिए उत्तरदायी है और पत्नी अपने पति के प्रति आशाकारिणी है। पत्नी तलाक तब ही मांग सकती है जब उसका पति स्थायी रूप से घर में अन्य किसी स्त्री को रखे रख से विवाहिता स्त्रियाँ स्वयं इकरारनामा (Contract) नहीं कर सकती थी। विधि संहिता में श्रमिकों और नारियों के हितों के विरुद्ध प्रावधान रखकर नेपोलियन ने फ्रांसीसी क्रान्ति के आदशों के विरुद्ध काम किया या 11808 ई० में मृत्यु-दण्ड, उम्र कैद, देश-निर्वासन, सम्पत्ति जब्त करने के कानून लागू किए गए। भिन्न-भिन्न अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न दण्ड निश्चित किए गए अपराधमूलक प्रक्रिया की संहिता (Code of Criminal Procedure) औ फौजदारी कानून (Penal Code) में कठोर आदेश शामिल किए गए थे जिन्हें नेपोलियन ने देश में राजनीतिक अपराधों रोकने के लिए बनाया था। फौजदारी मामलों में जूरी प्रथा समाप्त कर दी गई। विद्रोह करने वालों, सिक्के बनाने वालों तस्कर तथा डकैतों को दण्ड देने के लिए कुछ विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई थी। व्यवसाय सम्बन्धी कानून (Commercial code) साधारण व्यापार, समुद्री व्यापार, दिवालियापन तथा अन्य व्यापारिक समस्याओं को हल करने के लिए बनाये गए थे
 
खामियों के बावजूद भी विधि-संहिता नेपोलियन की एक महान एवं स्थायी कीर्ति है। विधि संहिता में उसने पुराने कानूनों के साथ-साथ क्रान्तिकालीन कानूनों और अनुभवों का समन्वय किया था। विधि संहिता को फ्रांस की क्रान्ति का सारांश कहा गया है। इसने फ्रांस के कानून को एकरूपता प्रदान की और व्यावहारिक रूप में न्याय व्यवस्था को सरल और आसान बनाया। यह आज भी फ्रांस की कानूनी पद्धति का मुख्य आधार है और अनेक यूरोपीय देशों के कानूनों का आधार है। एक बार नेपोलियन ने कहा था "मेरा वास्तविक गौरव मेरी चालीस युद्धों की विजयों में नहीं है। मेरी विधि-संहिता ही ऐसी है जो
 
कभी मिट नहीं सकेगी और जो चिरस्वायी सिद्ध होगी"। नेपोलियन का यह कथन सच साबित हुआ। फ्रांस की कानूनी व्यवस्था का तो विधि संहिता आज भी आधार है, फ्रांस की सेना ने जिन देशों को जीता वहाँ भी विधि-संहिता लागू की गई और नेपोलियन की पराजय के बाद भी अधिकांश यूरोप में इसे क्रियान्वित किया गया ।


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