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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - Jun 20 2021 6:00PM

VIENNA CONGRESS SEMESTER 5 PAPER 501 C11


वियना काँग्रेस [VIENNA CONGRESS]
 
फ्रांस का सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट 18 जून, 1815 को वाटरलू के मैदान में बुरी तरह से पराजित हुआ और उसे बन्दी बनाकर सेण्ट हेलना के निर्जन द्वीप में भेज दिया गया। नेपोलियन के पतन के बाद मित्रराष्ट्रों के सम्मुख अनेक कठिनाइयाँ उठ खड़ी हुई, जिनसे यूरोप के सभी राष्ट्र किसी न किसी रूप में प्रभावित हुए। अतः यूरोप के मानचित्र में नेपोलियन ने जो मनमाने ढंग से परिवर्तन कर दिये थे, उन्हें फिर से सुधारने के लिए आस्ट्रिया की राजधानी वियना में मित्रराष्ट्रों ने एक आयोजन किया जो यूरोप के इतिहास में वियना काँग्रेस के नाम से प्रसिद्ध है। वियना को इस काँग्रेस हेतु चुने जाने का प्रमुख कारण यह था, वह महाद्वीप के केन्द्र में स्थित था और नेपोलियन के युद्धों का मुख्य शिकार रहा था। साथ ही नेपोलियन की पराजय में आस्ट्रिया के चान्सलर मेटरनिख ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। वियना काँग्रेस की प्रमुख समस्याएँ
 
अपने कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व वियना काँग्रेस के सम्मुख निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न थे: 1. उन्हें यूरोप का पुनर्निर्माण करते समय ऐसी व्यवस्था करनी थी जिससे फ्रांस भविष्य में फिर वहाँ शान्ति भंग न कर सके। अतः आवश्यक था कि फ्रांस की सीमाओं पर शक्तिशाली राष्ट्रों की स्थापना की जाये।
 
2. मृतप्राय पवित्र रोमन साम्राज्य के स्थान पर जर्मनी में नवीन व्यवस्था करना।
 
3. वार्सा की प्राण्ड डची, नेपोलियन के कट्टर मित्र सेक्सनी तथा फिनलैण्ड के भाग्य
 
का निर्णय करना।
 
4. इटली में नवीन व्यवस्था करना तथा डेनमार्क को नेपोलियन का साथ देने के कारण दण्डित करना।
 
5. पोप की शक्ति व गौरव को बढ़ाना एवं प्रतिक्रियावादी भावनाओं को कुचलना। वियना काँग्रेस में भाग लेने वाले प्रमुख देश व उनके प्रतिनिधि
 
वियना सम्मेलन को यूरोप के इतिहास में कूटनीतिज्ञों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बैठक कहा जाता है। इसमें टर्की के अतिरिक्त यूरोप की समस्त बड़ी शक्तियों ने भाग लिया, किन्तु निम्नलिखित प्रमुख देशों और उसके प्रतिनिधियों ने इसके निर्णय को अत्यधिक प्रभावित
 
किया : आस्ट्रिया-आस्ट्रिया का प्रतिनिधित्व सम्राट फ्रांसिस प्रथम एवं चान्सलर मेटरनिख ने किया। चूँकि काँग्रेस का स्थान वियना था, इसलिए सम्राट फ्रांसिस प्रथम को इस सम्मेलन पर अपार धन व्यय करना पड़ा। मेटरनिख को इस सम्मेलन का कन्वीनर (Convener) बनायागया था। वह घोर प्रतिक्रियावादी था और जनतन्त्रवादी आन्दोलनों को घृणा की दृष्टि से देखता था। रूस रूस की ओर से स्वयं सम्राट जार अलेक्जेण्डर ने इस सम्मेलन में भाग लिया।
 
वह अपने आपको 'विजेता का भी विजेता' कहा करता था, क्योंकि उसने नेपोलियन को पराजित करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। रूसी अभियान की असफलता ने नेपोलियन के पतन का मार्ग उन्मुख किया था, अतः जार इस सम्मेलन में अपने लिए विशेष पुरस्कार और सम्मान की आशा से उपस्थित हुआ था। प्रशा- प्रशा का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसके मन्त्री हार्डेनबर्ग को भेजा गया था। उसे कम सुनाई पड़ता था इसलिए उसकी सहायता के लिए हम्बोल्ट को साथ भेजा गया।
 
सैन्यवादी और राष्ट्रवादी नीति के कारण हार्डेनबर्ग का उद्देश्य प्रशा को अत्यधिक शक्तिशाली
 
देश बनाना था।
 
इंगलैण्ड इंगलैण्ड के प्रतिनिधि के रूप में लॉर्ड कैसलरे तथा वेलिंगटन के ड्यूक इस सम्मेलन में भाग लिया। उनका उद्देश्य अपने देश के औपनिवेशिक हितों की रक्षा करना था। काँग्रेस के निर्णयों में लॉर्ड कैसलरे ने महत्वपूर्ण भाग लिया। फ्रांस फ्रांस का प्रतिनिधित्व तैलरां ने किया। वह अत्यन्त महत्वपूर्ण कूटनीतिज्ञ था।
 
उसने नेपोलियन के शासन तक सक्रिय राजनीति में भाग लिया था किन्तु नेपोलियन द्वारा एक बार अपमानित किये जाने के कारण उसने उसका साथ छोड़ दिया था। काँग्रेस में भाग लेने का उसका प्रमुख उद्देश्य नेपोलियन व उसके वंशजों से अपने अपमान का बदला लेना था। न्यायोचित सिद्धान्त का प्रतिपादन करके उसने बहुत सीमा तक अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया था।
 
वियना काँग्रेस का अधिवेशन नेपोलियन के पतन के बाद हुआ किन्तु इस अधिवेशन से पूर्व मित्रराष्ट्रों ने परस्पर कई सन्धियाँ कर ली थीं। 1812 ई. की आबू की सन्धि के द्वारा स्वीडन और नार्वे को संयुक्त करना निश्चित हुआ था। 1813 ई. की कैलिश की सन्धि के अनुसार प्रशा को पुनः शक्तिशाली बनाना निश्चित किया गया था। 1813 ई. की रिखेनबैख की सन्धि के अनुसार आस्ट्रिया, प्रशा व रूस ने पोलैण्ड का आपस में बँटवारा कर लिया था। इसी प्रकार 1813 ई. में टोप्लिज की सन्धि तथा 1814 ई. की शामों की सन्धि की धाराओं के अनुरूप विभिन्न निश्चयों के साथ काँग्रेस के प्रमुख नेता इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहुँचे। अधिवेशन के पूर्व की जाने वाली सन्धियों में सर्वाधिक महत्व 1814 ई. की पेरिस की सन्धि का था। अतः यह निश्चित था कि यूरोप का पुनर्निर्माण करते समय वियना काँग्रेस के निर्णय पूर्वगामी सन्धियों से प्रभावित रहेंगे।
 
वियना काँग्रेस के प्रमुख सिद्धान्त
 
शिथिल कार्यप्रणाली और प्रतिनिधियों के स्वार्थपूर्ण मन्तव्यों के बावजूद समस्याओं के हल के लिए वियना काँग्रेस ने तीन प्रमुख सिद्धान्त प्रतिपादित किये थे, जो निम्नवत् थे :
 
1. न्यायोचित राजसत्ता का सिद्धान्त इस सिद्धान्त का जन्मदाता फ्रांस का प्रतिनिधि तैलरां था। इसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि फ्रांस में बूर्वो-वंश को फिर से स्थापित किया जाय और बोनापार्ट-वंश के किसी व्यक्ति को भविष्य में फ्रांस की गद्दी पर न बैठाया 'जाय। इस सिद्धान्त के द्वारा तैलरां ने नेपोलियन द्वारा किये गये अपमान का बदला ले लिया।
 
2. शक्ति सन्तुलन का सिद्धान्त इस सिद्धान्त के द्वारा काँग्रेस ने यूरोप के राजाओं के मध्य शक्ति सन्तुलन स्थापित करने का निश्चय किया जिससे कोई भी शक्तिशाली देश दूसरे निर्बल देश को हड़प न सके। इस सिद्धान्त का पालन करते हुए फ्रांस को चारों ओर सेशक्तिशाली राष्ट्रों से घेर दिया गया ताकि वह भविष्य में यूरोप की शान्ति को पुनः भंग न कर सके ।
 
3. पुरस्कार एवं दण्ड का सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अन्तर्गत उन सभी राज्यों को पुरस्कार देने का निर्णय किया गया जिन्होंने नेपोलियन को पराजित करने में मित्रराष्ट्रों का कुछ भी सहयोग किया था। साथ ही उन समस्त राज्यों को दण्ड देने का निर्णय किया गया जिन्होंने युद्ध में नेपोलियन को सहयोग एवं समर्थन प्रदान किया था।


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