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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - May 10 2021 7:49PM

MA SEMESTER 3 CONTRIBUTION OF ARAB TO WORLD


स्थापत्य कला
 
(Architecture)
 
प्रारम्भ में अरबों ने स्काउन्नति नहीं की थी। वे बीमों (Tents) और कच्ची ईंटों के बने हुये मकानों में रहते थे। परन्तु विदेशों से सम्बन्ध स्थापित होने पर उन्होंने इस कला को विकसित किया। शुस्त्री के शब्दों में :
 
"Muslim Architecture is neither the work of Arabs, who were the earliest Muslims nor of any particular nation. It is international in characteristic architecture moulding of in which many nations of North Africa South Europe, West, Central and South Asia have taken an active part."
 
Shushtery.
 
ARUn
 
'मस्जिदे मुस्लिम' स्थापत्य कला के क्रमबद्ध विकास का इतिहास कही जा सकती है। धर्म के मनाने वालों की यह इच्छा होती है कि वह अपने धार्मिक स्थानों को सुन्दर से सुन्दर बना सकें। हजरत मुहम्मद ने जिस मस्जिद का सबसे पहले निर्माण किया वह कच्ची दीवारों की बनी थी। यहां तक कि 'कावा' भी आरम्भ में बिना छत के बना था। परन्तु जब अरब, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में गए तो उनके अधिकार में अनेक सुन्दर इमारतें आई और वह कारीगर भी उनके अधीन हुए जिन्होंने उनका निर्माण किया था। विजित प्रदेशों में सबसे पहली मस्जिद दुसरा में बनाई गई। साद-विन विकास के कूफा में एक मस्जिद तथा "दारूल हमारा" नामक महल का निर्माण कराया । वलीद के काल में महराब (Arch) मस्जिद का एक महत्वपूर्ण अंग बन गई। बाद में मीनार भी बनाये जाने लगे। 691 ई० में 'कुब्बस्तुखरा' का निर्माण अब्दुल मलिक ने कराया जो अपनी कारीगरी की दृष्टि से बहुत प्रसिद्ध है वलीद के काल में दमिश्क में सर्वविख्यात मस्जिद का निर्माण हुआ जिसके लिए कारीगर, मसाले तथा बहुमूल्य पत्थर मिश्र आदि देशों लाए गए थे। उमय्यद काल में बन प्रसाद भी बनाये गए जिनमें कसरे आमिरा सबसे प्रसिद्ध है।
 
अब्बासी काल में खलीफा का प्रासाद 'बाब-अज जहबू' 'कसरुल खुल्द या रूसाफह पैलेस, बर्मकी बजीरों के महल, 'ताज' नामक प्रसाद, 'दारुल शजरह (सोने चांदी का पेड वाला महल) तथा वुवैहिद महल, अरबों का उन्नति का स्पष्ट प्रमाण है।
 
अल-अजहर की मस्जिद और विश्वविद्यालय भी में बहुत प्रसिद्ध है। इस मस्जिद में 380 स्तंभ है। काहिरा की दूसरी मस्जिदों में कलौन, अलहकर, अलन सिर, मंदिनी तथा फैलबंग की बनवाई हुई मस्जिदें विशेष रूप से उल्लेखनीय है । स्पेन का अलहम्बा का महल तथा इसके दो भवन "कोर्ट आफ फिशपांड" और कार्डवा की मस्जिद बहुत प्रसिद्ध है। बगदाद के राज प्रासादों में "स्वर्णिम मार्ग" कस्रे खुल्द ताज, अलजाफरी तथा इस्फहान और शीराज की मस्जिदें, बीमारिस्तान और अजादुद्दौला का चिकित्सालय आदि उल्लेखनीय है इसके अतिरिक्त उत्तरी अफ्रीका में भी अरब स्थापत्य कला के नमूने मिलते हैं ।प्राणी मात्र के चित्रों का बनाना वचित होने के कारण मुस्लिम प कला में अलंकरण के लिए दीवारों पर कुरान की आयतें, स्तंभों तथा दरवाजों पर ज्योमितिक रेखायें, रंग-बिरंग के पत्थर परेलों तथा सुन्दर पौधों के चित्र
 
बनाये जाते थे।
 
संगोत (Music)
 
इस्लाम से पूर्व अरबों को संगीत कला से बहुत अभिरुचि थी और वह विभिन्न प्रकार के संगीत यंत्रों का प्रयोग करते थे। इस्लाम में संगीत को अधामिक बताया गया। इस कारण उमय्यद काल तक इस कला का विकास स्थगित उमय्यद कला में तुबेस इमे सुरीज तथा जमीला आदि प्रसिद्ध संगीतकार हुई। अब्बासी काल में हारून रशीद के काल में दूर-दूर से गायक आते थे और खलीफा तथा उनकी पत्नियो भी इस कला में बड़ी रुचि रखती थी। विशेष रूप में अल मेहदी ने इस कला को बहुत प्रोत्साहित किया और मक्के के सियात नामी गायक को बुलाकर संरक्षता प्रदान की। इसी का शिष्य इब्राहीम था जो छड़ों से धन निकालने में दक्ष या उस पर हामुन रशीद ने 150000 दिरहम व्यय किये। यह पुरस्कार के तौर पर दिये गए और उसका दस हजार दिरहम मासिक वेतन भी निश्चित किया गया। प्रो० हिट्टी ने लिखा है
 
"The refined and dazzling court of Ali Rashid patronized dance and singing as it did science and art to the extent of becomin the centre of a galaxy of musical stars." Prof. Hitt -
 
खलीफा अल अमीन को संगीत से बड़ा ही लगाव था। मुखिरिक भी इसी काल का संगीतज्ञ था। सोफा मामून और मृत्यक्किल का प्रसिद्ध संगीतज्ञ इसहाक इन इब्राहीम 'Dean of the musicians of his ago था। उसने इस बात का दावा किया कि 'जिन' (Jinns) ने उसके सुर (Melody) को उन्नति दी है।
 
अब्बासी वंश में इब्राहीम इब्नल मेहदी को एक संगीतज्ञ तथा गायक के रूप में बड़ी कीर्ति मिली। खलीफा अलवासिक को सितार 100 पर मुर्रे निकालने के कारण बड़ी ख्याति प्राप्त हुई परन्तु इनमें अलमोतामद सबसे दक्ष संगीतज्ञ था।
 
संगीत के ग्रन्थों में यूनानी भाषा से किए गए अनुवादों में अरस्तू को 'किता बल मसायल," किताब फिल नसल" तथा गैलन (Galen) की "किताबल सौत" यूकलिड (Enclid) की "किताबल नगम" तथा अप्य किताबों में किताबलः । मुसीफी, अलकबीरा" तथा "किताबल ईफा" आदि उल्लेखनीय है। अरब लेखकों में बलकिंदी, अतरजी अलकारबी, बादि ने बहुमूल्य ग्रंथ इस विषय पर प्रस्तुत किये । अरबों के संगीत के सिद्धान्तों को सात विभागों में विभक्त किया है। हिंदी (Hitti) ने लिखा है—“अरबों के संगीत का सैद्धान्तिक पक्ष यूनानियों से ग्रहण किय परन्तु उसका व्यावहारिक पक्ष उनका पूरी तरह अपना है।"चित्रकला (Painting)
 
इस्लाम ने प्राणी मात्र के चित्रों का बनाना अधार्मिक बताया है। इसलिए इस्लामी स्थापत्य कला में अलंकरण के लिये फल, फूल या ज्यामितिक चित्र हो दिखाई देते हैं। फिर भी बल मंसूर ने अपने महल पर एक घुड़सवार का चित्र, खलीफा अलअमीन ने दजला (Tigris) में चलने वाले शेर, चील आदि की शकलों की नौकाएँ खलीफा अल-मुककर्तादिर ने सोने चांदी का एक पेड़ और 15 घुड़सवारों का एक स्मारक बनवाया था। खलीफा अल-मोतसिम के महल में नंगी स्त्रियों के चित्र तथा शिकार के दृश्यों का चित्रण किया गया। मुस्लिम धार्मिक-चित्र कला का विकास 14वीं शताब्दी ई० से पहले न हो सका। इस पर ईसाई और नस्तूरी, (Nestorians) कला का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और इसका विकास पुस्तक अलंकरण (Book decoration) से हुआ जिनमे 'कलीला दमना' 'मकामात' तथा 'अलअगावी' नामक पुस्तकों की कला उल्लेखनीय है ।
 
प्रौद्योगिक कलाएँ
 
(Industrial Arts) )
 
ईरानियों के प्रभाव से अरबों ने धंधों को बड़ी उन्नति की। दरी और कालीन जिन पर विभिन्न प्रकार के दृश्य बने होते थे, तथा रेशमी कपड़े कुसियों के गद्दे आदि बड़ी मात्रा में बनाए जाते थे। खलीफा अलमुस्तईन ने एक कालीन विशेष रूप ते 13 करोड़ दिरहम की लागत से बननाया था, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार को सोने की चिड़ियाँ बनी हुई थी। जस्ते से बरतन, तांबे के लैम्प, साबुन, गुलाब और शीशे का सामान भी बहुत अच्छा बनाया जाता था। बगदाद में कागज बनाने का प्रथम कारखाना स्थापित हुआ जिसमें सफेद व रंगीन कागज बनाया जाता था। स्वर्ण कला (Jeweller's art) भी उन्नति के शिखर पर थी। मोती (Pearls), याकूत ( sapphires) पुखराज (Rubies) आदि हीरे-जवाहरात का बड़ा प्रचलन था। कहा जाता है कि हारून रशीद के पास एक ऐसा याकूत था जो रात में दिये जैसी रोशनी देता था।
 
लेखनकला
 
(Calligraphy)
 
अरबों ने लेखन कला के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति को इस कला का आरम्भ किस समय हुआ इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । इस्लाम के अभ्युदय के पूर्व अरबवासी इस कला में परिचित थे और कालान्तर में इस कला का अत्यधिक विकास हुआ ।
 
यह पूर्ण रूप से इस्लामिक कला थी, जिसका प्रभाव चित्रकला पर भी पड़ा। सुन्दर लिखने वाले का समाज में बड़ा सम्मान किया जाता था। अरबी लेखन कला के उन्नायकों में मामून काल का अलरेहानी प्रसिद्ध है। इब्ने मुकल्लद जिसके हाथ स्खलीफा अलरजी ने कटवा दिए थे बाएं हाथ से तथा कटे हुए हाथ में कलम दबाकर बहुत सुन्दर लिखता था ।चिकित्साशास्त्र
 
(Medicine)
 
अरबों को चिकित्साशास्त्र की उन्नति में भी ईरान, यूनान तथा अन्य देशों सहयोग मिला और विभिन्न भाषाओं की सम्बन्धित पुस्तकों के अनुवाद द्वारा •ई न्होंने इस विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। रोमलेन्डो शब्दों में
 
"As in mathematics. so in medicine, the Muslim advance beyond the Greeks has far deeper implications than those of a purely scientific character." "
 
-Rom Tandau.
 
इन विज्ञान के ग्रन्थों के अनुवाद करने वालों के युहन्न तथा हुनैन के नाम उल्लेखनीय हैं। उन्होंने इस विषय पर नई पुस्तकें भी लिखी। नेत्र रोगों पर सबसे पहली पुस्तक 'अल अर मकालात' 'फर ऐन' में नाम में इब्ने मासावेह ने लिखी । खलीफा हारून रशीद के चिकित्सक को 1,00,000 दिरहम अर्धवार्षिक मिलते थे। इससे इस काल में चिकित्साशास्त्र के महत्व का अनुमान लगाया जा सकता है औषधि निर्माण पर भी अनेक ग्रन्थ लिखे गए जिनमें जाबिर बिन हैयान बहुत प्रसिद्ध हुआ। हारून रशीद के काल में प्रथम चिकित्सालय 'बीयारिस्तान' बगदाद के स्थापित किया गया। चिकित्सकों तथा औषधि निर्माताओं की सरकार द्वारा परीक्षा ली जाती थी। चिकित्साशास्त्र पर ग्रन्थ लिखने वालों में अली अल अलतबरी, अलरजी तथा इब्ने सिना के नाम उल्लेखनीय हैं। अलतबरी खलीफा मुवक्किल का चिकित्सक था और उसने प्रसिद्ध पुस्तक 'फिरदौसुल हिकमत' लिखी! अलरजी ने 141 ग्रन्थों की रचना की जिनमें 'किताबुल असरार,' 'किता बुल तिब अलमन्सूरी' तथा चेचक के रोग पर 'अलजुदरीबल हसवह' बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है ।


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