Blog picture

Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - May 5 2021 5:40PM

BA SEMESTER 5 AMERICAN GREAT DEPRESSION 1929


1929 ई० की मंदी संपन्नता का प्रतीक हूवर का राष्ट्रपति महान हुए कि उसे 1929 ई० की महान मंदी (The Great Depression) का सामना करना पड़ा। वालस्ट्रीट स्थित बैंकों को दिवालियापन मंदी का प्रमुख कारण बन गया। न्यूयार्क का स्टॉक एक्सचेंज वर्षों से सट्टेबाजों का अखाड़ा बन गया था। 1929 ई० की ग्रीष्म ऋतु तक यह स्पष्ट हो गया कि शीघ्र ही संयुक्त राज्य की संपन्नता विपन्नता में बदलने वाली है। किसानों की दुर्दशा तो युद्धकाल में ही बढ़ गई थी अब उद्योगों की दुर्दशा होने वाली थी। 21 अक्टूबर, 1929 ई० को स्टॉक मार्केट में तेजी से गिरावट आई तथा दो दिनों के बाद तो स्थिति और भी नाजुक हो गई। जे० पी० मोर्गन तथा अन्य बड़े बैंकरों ने संकट को टालना चाहा, लेकिन 29 अक्टूबर को उनके प्रयास असफल रहे। उस दिन 16 मिलियन शेयर बेचे गए। उस महीने की कुल हानि 16 विलियन डालर की थी। दो सप्ताह तक बाजार में मन्दी रही। स्टॉक का मूल्य 40 प्रतिशत कम हो गया। मुद्रास्फीति आकाश छूने लगी। उद्योगपतियों ने छँटनी शुरू कर दी। इससे स्थिति ओर भी गंभीर हो गई। अर्थशास्त्रियों, उद्योगपतियों और राजनीतिक नेताओं ने मंदी के कारणों पर काफी विचार-विमर्श किया। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि 1920 ई० के दशक की आर्थिक नीति दोषपूर्ण थी। इस बीच उत्पादन तो बढ़ गया, लेकिन किसानों, कच्चे माल के उत्पादकोंऔर मजदूर तक क्षेत्राधिकार सीमित थे तथा यह उत्पादन को सीमित नहीं कर सकी। जब टूवर ने गेहूँ-उत्पादन को कम करने की अपील की तो कानास में गेहूँ उत्पादन की जाने वाली भूमि में केवल एक प्रतिशत की कमी की गई। कृषि-पार्षद ऐच्छिक फसल-नियंत्रण कार्यक्रम में असफल रही। अतः कोई अधिक कड़े कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की गई। कांग्रेस ने राष्ट्रपति हूवर के कृषि-सीमा शुल्क परामर्श को मान लिया। इसने हावलेस्मूट विधेयक (Hawley-Smoot Bill) का प्रारूप तैयार किया। इसमें 75 कृषि उत्पादनों और 925 निर्मित वस्तुओं के सीमा शुल्क में वृद्धि की योजना थी। इसके द्वारा फोर्ड ने मैकुम्बर (Fordney McCumber) अधिनियम की 26 प्रतिशत चुंगी को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दी गई। ठीक इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होने वाला ही था कि अमरीकी आर्थिक समुदाय (American Economic Association) के एक हजार सदस्यों ने राष्ट्रपति से इस पर निषेधाधिकार लगाने के लिए अनुरोध किया। उनका तर्क था कि यह आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना के विरुद्ध था। किन्तु, राष्ट्रपति ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और हस्ताक्षर कर दिया। प्रतिशोध में अन्य देशों ने अमरीकी मालों पर नए प्रतिबंध लगा दिए। विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी के काल में आर्थिक राष्ट्रवाद अवश्यम्भावी हो गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश अमरीका ने इसका नेतृत्व किया। आर्थिक मंदी से लोकतंत्रवादियों को सत्ता हथियाने में बड़ी मदद मिली। 1930 ई० के अंत में गणतंत्रवादी प्रगतिवादियों की सहायता से प्रतिनिधि सदन में उनका बहुमत हो गया। उन्होंने सिनेट पर प्रभावकारी नियंत्रण रखा। इसी समय से कांग्रेस ने हूवर को तंग करना शुरू कर दिया। उसे ऐच्छिक राहत कार्यों की अपेक्षा संघीय राहत कार्यों पर ध्यान देने के लिए कहा गया। लेकिन उसने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। 1931 ई० की वसंत ऋतु तक स्थिति में सुधार दिखाई पड़ा। किन्तु यूरोपीय वित्तीय मंदी के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था पुनः लड़खड़ाने लगी। मई, 1931 ई० तक आस्ट्रेलिया के बड़े-बड़े बैंकों का दिवाला निकल गया। जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों को मौद्रिक पद्धति भी अस्त-व्यस्त हो गई। इसे दूर करने के लिए हूवर ने युद्ध क्षतिपूर्ति और युद्धऋणों के भुगतानों के लिए एक वर्ष की मोहलत (moratorium) का प्रस्ताव रखा। किन्तु, फ्रांस ने इसे अस्वीकार कर दिया। सितम्बर तक इंगलैंड तथा अन्य देशों ने स्वर्णमान का त्याग कर दिया। यूरोपीय देशों का स्वर्ण अमरीकी बैंकों से वापस लिया जाने लगा। ज्योंही अन्य देशों ने स्वर्णमान को छोड़कर अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर लिया, उनका अमरीका के साथ व्यापार काफी घट गया।मुनाफा नहीं पहुँच सका। मुनाफे से नए औद्योगिक संयंत्र खड़े किए गए। 1929 ई० तक कल-कारखानों से उत्पादन होने लगा। उपभोक्ता उन्हें खरीदने में असमर्थ थे। 1929 ई० में छह व्यक्तियों में केवल एक के पास गाड़ी थी. पाँच में केवल एक अपने घर में बिजली लगा सकता था और दस में एक वहाँ टेलीफोन की सुविधा थी। इस आँकड़े से यह स्पष्ट होता है कि औसत अमरीकी निर्धन थे। 1920 ई० के दशक में सरकार की आर्थिक नीति दोषपूर्ण थी। धनिकों पर कर का बोझ कम था। आप में असमानता आ गई थी। धनी और धनी बन गए थे तथा निर्धन और भी निर्धन हो गए थे। सीमा शुल्क की ऊंची दर विदेशी व्यापार को नुकसान पहुँचा बड़े-बड़े उद्योगों के विनियमन या नियंत्रण के अभाव में एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इससे वस्तुओं के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई थी। सट्टेबाजी रोकने के लिए तथा किसानों की क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। टूबर कार्यक्रम (The Hoover Programmes) आलोचकों के अनुसार सरकार ने मंदी दूर करने के लिए भी गलत कदम उठाए। इसने बजट को संतुलित और स्वर्णमान को बनाए रखने का प्रयास किया। ये अपस्फीति (Deflation) के कारण थे जबकि देश में पहले से अपस्फीति थी। इसके लिए राष्ट्रपति इयर दोषी न था। मंदी दूर करने के ये पुराने मंत्र थे। लोकतंत्रवादी और गणतंत्रवादी दल के नेताओं, उद्योगपतियों तथा अर्थशास्त्रियों ने हूबर को ऐसा करने का परामर्श दिया था। कोषाध्यक्ष मेलन अपस्फीति को आवश्यक मानता था किन्तु, हूवर इससे सहमत नहीं था। वह उद्योगपतियों तथा मजदूरों से मिलकर आर्थिक मंदी दूर करना चाहता था। सर्वप्रथम हूवर ने विश्वास उत्पन्न करने के लिए घोषणा की, "इस देश का उत्पादन और वितरण ठोस आधार पर है।" अनेक उद्योगपतियों ने उसकी इस घोषणा को दुहराया। इसके बाद उसने उद्योगपतियों, कृषि और मजदूर नेताओं से बातचीत की। उद्योगपतियों ने उत्पादन या मजदूरी कम नहीं करने तथा मजदूरों ने अधिक मजदूरी या काम के घंटे कम नहीं करने का वचन दिया हूवर ने कर में कटौती तथा फेडरल रिजर्व को अधिक बैंक क्रेडिट देने का वचन दिया। उसने कांग्रेस से सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए 423 मिलियन डालर की माँग की। अप्रैल, 1929 ई० में हूवर ने कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाकर राहत और सीमा शुल्क वृद्धि की माँग की। 1929 ई० के कृषि बाजार अधिनियम (Agricultural) Marketing Act) द्वारा उसके कृषि कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया गया। कृषकों को राहत पहुँचाने के लिए कदम उठाए गए। टूवर ने बराबर ऐच्छिक कार्यक्रमों पर बल दिया। उसके पास मूल्य निर्धारण की कोई परियोजना नहीं थी जिसके लिए कृषक संगठन आवाज उठा रहे थे। आठ सदस्यों की एक कृषि पार्षद (Farm Board) गठित की गयी। इसे 500 मिलियन डालर दिया गया। मूल्यों में स्थिरता बनाए रखने के लिए यह राष्ट्रीय बाजार समितियों को ऋण देने तथा अतिरिक्त उत्पादन खरीदने के लिए निगमों को स्थापना करती थी। छह महीने के भीतर मंदी के फलस्वरूप कृषि उपजों के मूल्यों में और भी गिरावट आई। 1931 ई० की ग्रीष्म ऋतु तक गेहूँ स्थिरीकरण निगम (Wheat Stabilization Corporation) और कपास स्थिरीकरण निगम (Cotton Stabilization Corporation) मूल्यों में स्थिरता बनाए रखने में सफल रहे। 1932 ई० तक उनके कोष समाप्त हो गए, उनकेक्षेत्राधिकार सीमित थे तथा यह उत्पादन को सीमित नहीं कर सकी। जब टूवर ने गेहूँ-उत्पादन को कम करने की अपील की तो कानास में गेहूँ उत्पादन की जाने वाली भूमि में केवल एक प्रतिशत की कमी की गई। कृषि-पार्षद ऐच्छिक फसल-नियंत्रण कार्यक्रम में असफल रही। अतः कोई अधिक कड़े कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की गई। कांग्रेस ने राष्ट्रपति हूवर के कृषि-सीमा शुल्क परामर्श को मान लिया। इसने हावलेस्मूट विधेयक (Hawley-Smoot Bill) का प्रारूप तैयार किया। इसमें 75 कृषि उत्पादनों और 925 निर्मित वस्तुओं के सीमा शुल्क में वृद्धि की योजना थी। इसके द्वारा फोर्ड ने मैकुम्बर (Fordney McCumber) अधिनियम की 26 प्रतिशत चुंगी को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दी गई। ठीक इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होने वाला ही था कि अमरीकी आर्थिक समुदाय (American Economic Association) के एक हजार सदस्यों ने राष्ट्रपति से इस पर निषेधाधिकार लगाने के लिए अनुरोध किया। उनका तर्क था कि यह आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना के विरुद्ध था। किन्तु, राष्ट्रपति ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और हस्ताक्षर कर दिया। प्रतिशोध में अन्य देशों ने अमरीकी मालों पर नए प्रतिबंध लगा दिए। विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी के काल में आर्थिक राष्ट्रवाद अवश्यम्भावी हो गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश अमरीका ने इसका नेतृत्व किया। आर्थिक मंदी से लोकतंत्रवादियों को सत्ता हथियाने में बड़ी मदद मिली। 1930 ई० के अंत में गणतंत्रवादी प्रगतिवादियों की सहायता से प्रतिनिधि सदन में उनका बहुमत हो गया। उन्होंने सिनेट पर प्रभावकारी नियंत्रण रखा। इसी समय से कांग्रेस ने हूवर को तंग करना शुरू कर दिया। उसे ऐच्छिक राहत कार्यों की अपेक्षा संघीय राहत कार्यों पर ध्यान देने के लिए कहा गया। लेकिन उसने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। 1931 ई० की वसंत ऋतु तक स्थिति में सुधार दिखाई पड़ा। किन्तु यूरोपीय वित्तीय मंदी के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था पुनः लड़खड़ाने लगी। मई, 1931 ई० तक आस्ट्रेलिया के बड़े-बड़े बैंकों का दिवाला निकल गया। जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों को मौद्रिक पद्धति भी अस्त-व्यस्त हो गई। इसे दूर करने के लिए हूवर ने युद्ध क्षतिपूर्ति और युद्धऋणों के भुगतानों के लिए एक वर्ष की मोहलत (moratorium) का प्रस्ताव रखा। किन्तु, फ्रांस ने इसे अस्वीकार कर दिया। सितम्बर तक इंगलैंड तथा अन्य देशों ने स्वर्णमान का त्याग कर दिया। यूरोपीय देशों का स्वर्ण अमरीकी बैंकों से वापस लिया जाने लगा। ज्योंही अन्य देशों ने स्वर्णमान को छोड़कर अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर लिया, उनका अमरीका के साथ व्यापार काफी घट गया।Association) की स्थापना की थी। अनेक किसान उसमें शामिल होकर शहर भेजे जाने वाले कृषि उत्पादनों को रोकने लगे। वे अपने उत्पादन के लिए उचित मूल्य चाहते थे। 1932 ई० में लगभग 14,000 बेरोजगार सैनिकों ने वाशिंगटन में अपनी युद्ध-सेवा के लिए दिए गए बौड़ों के तुरन्त भुगतान के लिए प्रदर्शन किया। वे एक सप्ताह तक वहाँ पड़े रहे। अंत में आधे लोग निराश घर लौट गए। शेष लोगों की उपस्थिति से हूवर और वाशिंगटन के निवासी चिन्तित हो उठे। इसी बीच वहाँ दंगा शुरू हो गया हूवर ने उन्हें खदेड़-बाहर करने के लिए सेना भेज दी। जनरल डॉगलस मैक आर्थर ने उन्हें निकाल बाहर किया।



Post a Comment

Comments (0)